कुछ अनकही ख्वाहिशें
कुछ अनकही ख्वाहिशें
मैं तुझसे जो कह पाता तो अच्छा होता
तेरे बिना जो रह पाता तो अच्छा होता
यू पहरेदारी मेरे साँसों पे तेरी न होती
कुछ और पल जो तस्व्वुर से
जी पाता तो अच्छा होता।
तेरे हाल-ऐ दिल को जो न समझ पाता तो अच्छा होता
तुझसे करीबियों से खुद को रोक पाता तो अच्छा होता
कुछ जो मुकाम अधूरे रह गए वो पूरा कर लेता
जो चार कदम और अकेले चल पाता तो अच्छा होता।
तेरी कहकशी पे जो बेबाक हो जाता तो अच्छा होता
खवाबो से इतर ,हकीकत में जी पाता तो अच्छा होता
आज़ाद खयालों की उड़ान मेरी भी होती
जो कुछ पल और दिल को पत्थर बना पाता तो अच्छा होता।
तुझसे दूर जाना जो सेह पाता तो अच्छा होता
मेरी फिक्र में जो तू न आता तो अच्छा होता
कहीं शायर, तो कही बादशाह खुद की किताब के पन्नों में
गर वादी -ऐ इश्क़ में फ़क़ीर रह गए होते तो अच्छा होता।