" कटु सत्य "
" कटु सत्य "
मैं सिर्फ जीना और
मरना ही जानता हूँ
मृत्यु के बाद किसने
जाना क्या होता है
ग्रंथों और पुराणों को
लिखनेवाले हम ही थे
सत्य को भी यहाँ
झुठला दिया जाता है
चलता फिरता मानव तन
निर्जीव हो जाता है
लोग फूट -फूट कर रोते हैं
मातम सा छा जाता है
पर यह है सत्य धरा
पर प्रचलित मानक
कोई अक्षुण और अमर
कभी नहीं होता है
ग्रंथों और पुराणों को
लिखनेवाले हम ही थे
सत्य को भी यहाँ
झुठला दिया जाता है
याद करेंगे कुछ दिन अपने
फिर सब भूल जाएंगे
कुछ दिनों तक याद रहेगा
स्मृति सारे बिखर जाएंगे
याद उन्हें रखते
जग में जिसने अच्छा
नित- नवीन जनहित
में काम करता है
ग्रंथों और पुराणों को
लिखनेवाले हम ही थे
सत्य को भी यहाँ
झुठला दिया जाता है
इतिहासों के पन्नों को
तुम मत फाड़ो
अपने कर्तव्यों पर चलके
तुम लोगों को जोड़ो
विध्वंसक, प्रवृतिओं ,
अकर्मण्यताओं से
दूषित बनकर
घृणित इतिहास बनाता है
ग्रंथों और पुराणों को
लिखनेवाले हम ही थे
सत्य को भी यहाँ
झुठला दिया जाता है
मैं सिर्फ जीना और
मारना ही जनता हूँ
मृत्यु के बाद किसने
जाना क्या होता है
ग्रंथों और पुराणों को
लिखनेवाले हम ही थे
सत्य को भी यहाँ
झुठला दिया जाता है !!