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कश्मकश

कश्मकश

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ना ही सवाल

ना ही जवाब

ख़त्म सिलसिला सब बातों का।

दर्द पर हँसी

हँसी में दर्द

मज़ाक सा बन गया जज़्बातों का।

चाँद खफ़ा

सितारे फ़ना

ये हाल है चाँदनी रातों का।

सच पर सवाल

झूठ मालामाल

दौर चल रहा सियासतों का।

गिरहें खोल दें

उलझा भी दें

क्या करूँ मैं नगमातों का।

ख़ामोश था

अब शोर हूँ

एहसान बहुत है इल्ज़ामातों का।


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