कर्मों की स्याही
कर्मों की स्याही
कागज़ की हैं जिंदगी
न जाने कब उड़ जाएगी
शरीर का बोझ लेकर
चलती हैं आत्मा कि जिंदगी।
वरना कब कि उड़ जाती,
मिट जाती जिंदगी
स्याही से कुछ तो
लीखेंगे ब्रम्हाजी।
कर्मों की स्याही से
कुछ तो हमें भी
लिखना हैं जिंदगी।
वरना कब की उड़ जाती,
मिट जाती जिंदगी
आत्मा की शांति के लिए
जीते जी कुछ करना है।
इस धरती माँ का
कुछ तो ख्याल करना है
धरती पर चलती है जिंदगी
वरना कब की उड़ जाती
मिट जाती जिंदगी।