कलम का फर्क
कलम का फर्क
अक्सर हमारे कलम
समान चीजें नही लिखती
जैसे हमारे आंखें
समान चीज़ें नहीं देखती।
मेरे कलम
तुम्हारे कलम से ढेर अलग है।
तुम्हारे कलम में
समुन्दर सांस लेता हैं
चाँद मुस्कुराती है और
भमरे और कलियां गीत गाते हैं।
मेरे कलम मे भी कोई गीत गाता है।
मेरे कलम में गीत गाते हैं
आंदोलन में निकले मजदूर
पसीने से लुफ्त, बारिशों की
राह ताकती इक किसान
बेघर हुए परिंदे और
बिना कुछ खिलाये बच्चे को
सुलाती हुई इक माँ।
तुम्हारे कलम उनके लिए है,
जिनके पास सबकुछ तो हैं
फिर भी कुछ नही है,
मेरे कलम उनके लिए है,
जिनके पास कुछ भी नहीं
फिर बी सबकुछ, बहुत कुछ है।
तुम्हारे कलम अक्सर
लोगों को झुठलाता है, सपनो में ले जाता है
मेरे कलम से सच्चाई का महक आता है
हकीकत में जीने की उम्मीद देता है।
हैं यह भी फर्क है
की तुम्हारे कलम को
मिल सकता है ढेर सारा इनाम
लेकिन मेरे कलम को मिल सकता हैं
एक कटे हाथ और सुई में सिलाई इक जुबान।