कल फिर तो
कल फिर तो
क्या हुआ छा गया, अन्धेरा आज तो
आनेवाली है ना, सपने लेकर, कल सुबह तो।
क्या हुआ मुरझा गए, फूल आज तो
खिलनेवाला है ना चमन कलियों से, कल फिर तो।
क्या हुआ पंख कटे है आज तो
छूने वाले है ना हम आसमां कल फिर तो।
क्या हुआ थम गई है, साँसे आज तो
लेनेवाले है ना खुली साँसे, कल फिर तो।
क्या हुआ कैद हो गए हम आज तो
मनानेवाले है ना जश्न आजादी का, कल फिर तो।
