क़िताब... मेरी दोस्त
क़िताब... मेरी दोस्त
हाथों की लकीरों ने अजब तकदीर लिखी
बीते पल की स्याही से नई दास्तान लिखी
मूक मगर खिलते चेहरे की मासूमियत देख
मजबूर नहीं मजबूत दिल की कहानी लिखी,
कहानी दरिया की जो तरंग से बहती चली
बेला सुगंध की पवन उपवन महकाती चली
नन्हें कंकर की जो प्रहार से सख्त शिला बनी
वृक्ष के टूटे तने की जो सींची तो कोंपल बनी,
कथा नव जीवन नव निर्माण नव उत्थान की
पहली से अंतिम कड़ी तक गूंजती सांस की
आरंभ से अंत चलते कदमों के निशान की
सोच से असल में बदले कर्म के सम्मान की,
हर गुण दोष क्षमा त्याग से ऊपर उठकर
ममता के आंचल से तेज धार तलवार तक
बेबसी को आत्म सम्मान के पदक से बदल कर
हर युग की परीक्षा में विजय पताका लहराकर,
मेरी हर कहानी को एक नया रूप देकर
हर पन्ने में जान भरी है अपनी मेहनत देकर
हर आखर गुण गान करता तेरे पराक्रम पर
पढ़ ले प्यार से मेरे दोस्त मुझे भी दोस्त मानकर।
