किसान
किसान
★दोहा पंच★
राख राख तैं राख ले,
बने जतन के राख।
राखत राखत एक दिन,
जिनगी होही राख।।
आवत बदरा देखि के,
झूमय नाचय मोर।
सरसर सरसर हे पवन,
मारय हिया हिलोर।।
जइसे बदरा आत हे,
भुँइया करय बिचार।
नाँगर जूँड़ा बाँधले,
बइला धर तइयार।।
टरर टरर मंडुक करे,
झिंगुर मारय चीख
।
धनहा भुँइया देख ले,
निकले बढ़िहा पीख।।
छानी परवा हे चुहत ,
जोरा करलौ थोर।
बोनी होगे हे शुरू,
नाँगर बइला जोर।।
भुँइया के भगवान मैं,
दिनकर हावय संग।
खेती मोरो पहिचान हे,
भगवा हावय रंग।।
आज मोर मन हे मघन,
उमड़त हवय बिचार।
देखव पढ़लव मिल सबो,
लेवव छाँट निमार।।