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Kalpana Pandey

Inspirational

4.8  

Kalpana Pandey

Inspirational

खूबसूरत नहीं हूँ मैं

खूबसूरत नहीं हूँ मैं

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सुनो!

खूबसूरत नहीं हूँ... मैं

हाँ ....अद्भुत ज़रूर हूँ

ये सच है की नैन नक्श के खांचे में

कुछ कम रह जाती हूँ हर बार

और जानबूझ कर आंकड़े टाप आती हूँ

वही ....झुरझुरी वाले

इसलिए भी शायद अद्भुत हूँ मैं ।


ज्यादातर लोग सादगी मुड़कर देखते नहीं

पर अद्भुत को अक्सर रुक कर सुनते हैं ....

सुनते हैं ...

जब ये कहती हूँ कि ....

झूठ नहीं सच हूँ मैं

माटी से बना अद्भुत सच

हथेलियों से लेकर उंगलियों तक में फैला हुआ

उस एक कदम की सौ उड़ान में बसा हुआ

देह की हर सलवट में लिखा हुआ

निचले होंठ पर जरा से नीचे तिल पर जमा हुआ

मैं गुज़रती हूँ तो एक सोच बहने लगती है

रुक जाती हूँ तो प्रश्न ही प्रश्न खिल जाते हैं

ये अद्भुत ही तो है....

फूल मेरा मद मांगते हैं

जुगनू दोपहर में उजास पीते हैं

तितलियाँ थिरकन पाती हैं और हवा मुझसे जीवन

मैं अपनी थाप की मालकिन हूँ

और अपनी ऊष्मा की भी

इन्हें कभी सूरमे में ...कभी महावर में भर लेती हूँ

मेरी मुस्कान कराहती है

मेरे दुख महकते हैं

अद्भुत दिखा क्या ?


अरे सुनो !

अद्भुत देखा नहीं ...बस छुआ जा सकता है।

लो ! अब तुम देह में ढूंढने लगे मुझे

जबकि मैं तो चाँद की फांक में हूँ

उस आभास के नीले में

अभी उस रंग डूबे लम्स में

और उन अक्षरों के लिहाफ में भी हूँ।

अब भी नहीं दिखा अद्भुत?


ओहहो !

अद्भुत सर उठा कर नहीं देखा जाता

लाओ ....

हथेलियों में आँखें धर दूँ कि देख सको

और अंतस में हौसला सिल दूँ कि मान सको

चलो फिर से शुरुआत करते हैं..

और सीने में कान बना दूँ कि सुन सको

होठों में संवेदना रंग दूँ कि कह सको

अब शून्य से न्यून की तरफ बढ़ो

देखो कि....

अद्भुत हूँ मैं

और मेरी परवाज़ अभूतपूर्व


सबको जादू दिख जाए तो मैं भी खूबसूरत देह ही हुई न।



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