खट्टी मीठी
खट्टी मीठी
क्या कभी पी है चाय कुल्हड़ में,
गली के नुक्कड़ पे।
एक मीठी सी स्वाद,
और एक खट्टी सी याद
बन ही जाती है।
क्या कभी तोड़ें है आम,
ठाकुर के बगान से।
एक मीठी सी आम,
और एक खट्टी सी दांट
मिल ही जाती है।
क्या कभी सुने हैं किस्से,
राजा रानी के दादी से।
एक मीठी सी नींद,
और एक खट्टी सी ख्वाब
आ ही जाती है।
क्या कभी दौडे़ हो नंगे पांव,
गली गली और गाँव गाँव।
एक मीठी सी यारी,
और एक खट्टी सी थकान
हो ही जाती है।
क्या कभी की है कल्पना,
वापस बचपन में जाने का।
एक मीठी सी हंसी,
और एक खट्टी सी आँसू
निकल ही जाती है।