कहाँ साथ तुम थे
कहाँ साथ तुम थे
जब बादलों के पीछे, ये सूरज छुपा था,
हवाएं रुकी थी, और मैं भी थका था,
दोपहरी में भी जब, चुप था सन्नाटा,
खामोशी में भी हमने, कहाँ कुछ बांटा।
जब ढला ये सूरज, तुम तब भी तो गुम थे,
धुंधली शाम में भी, कहाँ साथ तुम थे,
थमा वक्त भी जब, कहाँ हाथ थामा,
हैं अकेले ही हम, लिया अब ये माना।
जब तारों ने झांका, तुम तब भी कहाँ थे?
महफ़िल भी घूमा, हम फिर भी तन्हा थे,
इन रातों के साए में, तुम्हें ही तो ढूंढा,
हुई रात इतनी, कहाँ आंख मूंदा।