केंद्रबिंदू
केंद्रबिंदू
रोटी की बात मत करो
रोटी पर सवाल मत करो
बात करनी हो तो करो सिर्फ मेरी
मेरे आगे रोटी क्या है।
मात्र गूंधे हुए आटे का
सिका हुआ एक टुकड़ा
पर मैं वो हूँ जिसमें
समाया है सब कुछ
देखो मेरी ओर देखो और बताओ
तुम्हें किसकी है ज्यादा जरूरत
रोटी की या मेरी ?
देखो भूल रहे हो
तुम रोटी का रंग-रूप,
उसका आकार
देखते रहो मेरी तरफ
मिट रही है तुम्हारी भूख
'मिट रही कि नहीं'
मिट रही है ना...'
बस देखते रहो मेरी तरफ
सुनते रहे मेरी बात
भूलते रहो हर सवाल
क्योंकि मैं, मैं हूँ
और यह मैं कोई सवाल नहीं,
अपितु हर सवाल का
एक मात्र जवाब है।
जब सवाल हो किसान
जवाब है 'मैं'
जब सवाल हो पानी
जवाब है 'मैं'
जब सवाल हो महँगाई
जवाब एक मात्र 'मैं'
जब सवाल हो देश
तब सिर्फ मैं, मैं और 'मैं।
'साहब भूख'
'साहब नौकरी'
'साहब रोटी'
बड़े मूर्ख हो तुम
मैं बात कर रहा हूँ देश की
तुम्हें अभी भी चाहिए रोटी
देशद्रोही कहीं के
मारो - मारो- मारो।
रोटी का सवाल
बगावत का बिगुल है
इतिहास गवाह है
जिसने भी पूछा है
रोटी के बारे में सवाल
मारा गया है
या तो भूख से
या फिर उनके हाथों
जिनका काम था रोटी देना।