जननी
जननी
उठती लहरों में स्तब्ध है वो जननी,
मेरी हर मायूसी में सुकून है वो जननी।
नौ महीनों का दर्द सह कर जिसने मुझको जन्म दिया,
उसके ना होने पर भी उसके उपकार को मैंने है नमन किया।
हर पल दूर होकर भी मार्ग दर्शाती है वो मुझे,
मेरी माँ ईश्वर के पास होकर भी
ईश्वर से साक्षात्कार करवाती है मुझे।
जब भूल कर भी गलत हाथो को छूता हूं में,
प्यार से आकर एक रूह सहलाती है मुझे।
जब भी ज्वर से तपता है मेरा तन,
शीतलता उसकी ही तलाशता है मेरा ये मन।
कभी मेरी रूह तो कभी परछाई बन,
उसके एहसास से ही भर जाती है मुझमें लगन।
कितने मोड़ आए ज़िन्दगी में,
हर मोड़ पर साथ छोड़ा किसी ने,
लेकिन केसे शिकायत करूँ में माँ से,
वो तो हर पल रहती है मेरे संग में।
दूर हो कर भी नहीं है दूरी,
ना सहला पाना मुझे, ना डांट पाना;
मंजूरी नहीं हैं, ये मेरी माँ की है मजबूरी;
ये ज़िन्दगी का मोल नहीं ,
जो रह जाए उसकी कोई ख्वाहिश अधूरी।