जिंदगी - एक सफर अनोखा
जिंदगी - एक सफर अनोखा
पता नही कहा से आया हूँ
न जाने कहा जाऊंगा...
मजबुरी की लहरे पोहोचायेंगी जहा,
गूजारा करना है वहां...
धूप से तल रा हूँ, भूख, प्यास का मारा हूँ
कठिनाईया है बोहत जिंदगी में,
जीने की उंमीदे भी.!
फिर भी जिंदगी के गीत गा रहा हूँ !
है खुदा बंदे को तेरी
सभी अपनो ने ठुकराया है !
चंद खुशीयों की खातिर,
पल - पल तड़पाया है !
गिले शिकवे नहीं किसी से
पुरा आसमां अब मेरा छत् है,
उठाऊ झोला , निकल पड़ूँ
यही फकीर की फितरत मे है !
ए इंसान , क्या मेरा क्या है तेरा
कोई नही है किसी का यहाँ !
खाली हाथ आए थे जहान में,
खाली हाथ ही जाना है वहाँ !