ज़िन्दगी - ए - ज़ंजीर (जीवन के अनचाहे बंधन)
ज़िन्दगी - ए - ज़ंजीर (जीवन के अनचाहे बंधन)
मै हूं गिरफ्त में ज़िन्दगी - ए - ज़ंजीर के,
अब मै उड़ना चाहता हूं,
मर- मर के जी लिया बहुत अब तक,
अब जी कर मरना चाहता हूं,
खुशी का निवाला दे ना सकी ज़िन्दगी जब,
बस गम के जाम पिए में जाता हूं,
मै हूं गिरफ्त में ज़िन्दगी - ऐ - ज़ंजीर के,
अब मै उड़ना चाहता हूं,
मर- मर के जी लिया बहुत अब तक,
अब जी कर मरना चाहता हूं,
के यहां कड़ी धूप है मेहनत की, वहा आगे ठंडी छव है,
ये वक्त कब रुकता है लक्ष्य,
ये तो वक्त का बहाव है,
अरे इस कड़ी धूप में मै तो अब,
नग्न - पगतल,पैदल चलना चाहता हूं
मै हूं गिरफ्त में ज़िन्दगी - ए - ज़ंजीर के,
अब मै उड़ना चाहता हूं,
मर- मर के जी लिया बहुत अब तक,
अब जी कर मरना चाहता हूं,
ये जो बिकाऊ ज़माना हमे दिखता है
यहां हर कोई अपनी-अपनी कीमत पर बिकता है,
इस बिकाऊ ज़माने में,
इन ज़मीर की दुकानों में,
मै या तो जोहरी,
या फूटी कौड़ी बनना चाहता हूं,
मै हूं गिरफ्त में ज़िन्दगी - ए - ज़ंजीर के,
अब मै उड़ना चाहता हूं,
मर- मर के जी लिया बहुत अब तक,
अब जी कर मरना चाहता हूं!
