STORYMIRROR

Amit Soni

Abstract

3  

Amit Soni

Abstract

जीवन

जीवन

1 min
255

जीवन एक रास्ते जैसा लगता है 

मैं चलता जाता हूँ राहगीर की तरह 

मंजिल कहाँ है कुछ पता नहीं 

रास्ते में भटक भी जाता हूँ कभी-कभी

हर मोड़ पर डर लगता है कि आगे क्या होगा 

रास्ता बहुत पथरीला है और मैं बहुत नाजुक 

दुर्घटनाओं से खुद को बचाते हुए घिसट रहा हूँ जैसे 

पर रास्ता है कि ख़त्म होने का नाम नहीं लेता 

कब तक और कहाँ तक चलते जाना है 

ना मुझे पता है और ना कोई बताता है

पर गिरते संभलते चला जा रहा हूँ 

उम्मीद में कि उस मंजिल पर सुकून होगा 

जिसका अभी तक कोई निशाँ भी नहीं मिला 

पर मैं और कर भी क्या सकता हूँ 

रास्तों पर रुका भी तो नहीं जा सकता 

रुको तो बेचैनी और बढ़ जाती है 

रास्ते जैसे धकेलने से लगते हैं मुझे

कभी शक होता है कि मैं चल रहा हूँ या रास्ते 

इसी उधेड़बुन में उलझा हुआ खुद को समेटकर 

मैं बस चला जाता हूँ चाहे जैसे भी हो 

कि कभी तो ये सफ़र ख़त्म होगा मंजिल पर पहुँचकर 

क्यों कि ये जीवन एक रास्ता बन चुका है मेरे लिए 

जिस पर मैं बस चलता जा रहा हूँ।  


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract