जीवन धारा
जीवन धारा
जीवन है नदिया की धारा,
पास कहीं है दूर किनारा।
ऊँचे शिखरों से उछल उछल
कंकड पत्थर से रगड रगड
बनती है निर्मल जल धारा।
कितनी रातें दिन कितने चलना,
चाँद के पीछे सूर्य का ढलना।
हँसकर पहर चले हैं कितने,
कौन पहर है किसे ठहरना।
जिसने इसको जान लिया है,
अपने को पहचान लिया है।
स्वर्ग नरक के बंधन तोडे,
पाप पुण्य पहचान लिया है।
सम्यक सम्बुद्धी करुणा सागर
बुद्ध के पथ को जान लिया है।
पूर्व का डर कल की चिन्ता छोडी
इस पल मे खुशियाँ बाँट लिया है।
