STORYMIRROR

Jaini Dave

Abstract

4  

Jaini Dave

Abstract

जब देखा था पहली बार

जब देखा था पहली बार

1 min
208

जब देखा था तुम्हे पहली बार 

तब सोचा नहीं था कि कभी

हम भी बनेंगे यार


जब देखा था पहेली बार 

तब तुम थी समंदर थी शांत

तब सोचा नहीं था कि कभी

तुम ही बनोगी मेरी आवाज


तब तब थी इतनी दुखी की तुम्हें देखने वाले की भी 

आंखे भर आए तभी सोचा नहीं था कि कभी 

तुम ही बनोगी मेरी हर खुशियों का द्वार


जब हम बन गए एक सच्चे वाले यार 

हम साथ ही रोए साथ ही हसे 

साथ ही मनाया हर छोटा बडा त्योहार

पता ही नहीं चला कब बन गई बहने 

कब गूजर गए यह हॉस्टल वाले साल


आखिर आ ही गया विदाई का दिन 

कभी सोचा नहीं था की एक दूसरे से

बिछड़ने का गम, घर जाने की खुशियों

 के सामने छोटा पड़ जाएगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract