जौहर...
जौहर...
किले के बीच स्थित मैदान में लकड़ियों,
नारियलों एवम् अन्य ईंधनों का ढेर लगाया गया।
सारी स्त्रियों ने, रानी से दासी तक,
साथ गोमुख कुन्ड में विधिवत पवित्र स्नान किया।
सजी हुई चिता को घी, तेल और धूप से सींचा गया,
और पलीता लगाया गया।
चिता से उठती लपटें आकाश को छू रही थी।
नारियां अपने श्रेष्ठतम वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित थी,
अपने पुरुषों को अश्रु पूरित विदाई दे रही थी,
अंत्येष्टि के शोक गीत गाये जा रही थी.
महिलाओं ने रानी पद्मावती के नेतृत्व में चिता कि ओर प्रस्थान किया....
और कूद पड़ी धधकती चिता में....
अपने आत्मदाह के लिए....जौहर के लिए....
देशभक्ति और गौरव के उस महान यज्ञ में अपनी पवित्र आहुति देने के लिए।
जय एकलिंग, हर हर महादेव के उदघोषों से गगन गुंजरित हो उठा था।
संदेश - पूज्य तन सिंह जीं की कुछ पंक्तियाँ हैं कि
"पूजा की एक भी पंखुड़ी व्यर्थ नहीं जाती ,
बलिदान का कोई भी पहलू निरर्थक नहीं जाता,
इसलिए हो नहीं सकता, कि असंख्य लोगों का यह बलिदान व्यर्थ जायेगा।”