जाने हम कब बदल गए…
जाने हम कब बदल गए…
खामोशी के पन्नों पर बचपन की याद लिख दे,
इन अनसुनी राहों पर आज कोई फ़रियाद लिख दे।
वो कोमल सी निष्पाप हँसी, वो खिलखिलाता सा मन,
ना जाने इन यादों में, कैसे खो गया बचपन !
पलट कर देख, वही महका समां है,
यादों की करवटों में झूमता जहां हैं।
बचपन की डोर ने जाने कितने रिश्ते हैं बांधे,
प्यार से, मासूम गांठें हैं बाँधीं।
आज़ाद था मन, आज़ाद थे हम,
दुःख, पीड़ा, ईर्ष्या, द्वेष, कहाँ जाने थे हम।
दोस्तों की बातें दिल की नजदीकियां बन जाती थीं,
आपसी तकरार जीवन की नव निधि बन जाती थी।
क्या थे वो दिन बस यूँ ही गुज़र गए,
गुमनाम इन राहों में, जाने हम कब बदल गए !
यादों का संचार है,
जिन पर हमें अभिमान है।
इन यादों को आज मेरा सलाम है,
जिन यादों में डूबता ये जहां हैं।
