हसरतों की नज़्म और बैरी चांद
हसरतों की नज़्म और बैरी चांद


हसरतों की नज़्म का चल
आज एक पैगाम लें,
कुछ तु बता,कुछ मैं कहुं
प्याले में बैरी चांद लें।
कुछ छटपटाहट, कुछ कसमसाहट
आंखों से लफ्ज़ थाम लें,
आ साथ बैठे पल दो पल,
आंचल में बैरी चांद लें।
मुददत से जो ये है बंधी
अधूरी आस थाम लें,
मैं तू कहुं, तू मैं कहे,
हर धड़कन हमारा नाम लें।
थम जा जरा तु दो पहर,
आ खुदको थोड़ा जान लें
और हर गुजरती शाम में,
पहलू में बैरी चांद लें।
ये है मुसाफिर रात का,
इसमें दिल कहां धड़कन कहां?
ये एक फसाना है बड़ा
ख्वाबों में बैरी चांद लें।
मैं चांदनी सी बिखर जाऊं,
तु चांद का आयाम ले,
मैं चकोर सी तकती रहूं
तू बैरी चांद का नाम ले।
मैं तुझ में खो जाऊं कहीं,
तू मेरे दिल में अपना मुकाम ले।