हर हर गंगे
हर हर गंगे


उतरी गिरि से जाह्नवी, बहे धरा पर धार।
तभी भगीरथ का हुआ, था सपना साकार।।
निर्मल पावन है बहुत, ये गंगा का नीर।
जग में हरता है सदा, पाप सभी की पीर।।
जटा मध्य शिव के सदा, होता इसका वास।
पूजन इसका जो करे, पूरी हो हर आस।।
सुरसरिता का तो रहे, ब्रह्म कमंडल धाम।
हरि के पाँव पखारती, देवपगा है नाम।।
देवनदी की धार में, होता बहुत प्रवाह।
सावधान रहना वहाँ, बनो न लापरवाह।।
त्रिपथगामिनी है नदी, मोक्षदायिनी काम।
श्रद्धा पूर्वक मनु भजे, पावे फिर सुरधाम।।