हक़
हक़
और ये आसमान है
जो सबका है,
फिर भी नहीं बँटा हुआ
क्योंकि ये सबका है
पूरा - पूरा
क्षितिज से क्षितिज तक
अनंत से अनंत तक
पूरा - पूरा,
और कँधों पर सपने उठाये,
इसके आँगन में दौड़ते ये बादल
इन पर भी सबका हक है
इन पर हक सभी का है
पर ये किसी के हिस्से में नहीं आते
क्योंकि ये सबके हैं
पूरे-पूरे
मगर वो सपने जो बादलों पर सवार होकर
आसमाँ छूने निकले हैं,
वे बँटे हुए हैं क्योंकि
तुम्हारे सपनों पर तुम्हरा हक है
और मेरे सपनों पर मेरा
पूरा-पूरा ।
