कोरे कागज़ पर
कोरे कागज़ पर
आज तुम लिख ही दो
अपना आर्त !
वो वेदना जो तुम्हारे मौन से पोषित होती है
वो आँसु जो बचाकर रखा है तुमने
संसार की नज़रों से
और वो व्याकुलता,
जो रह रहकर निकल आती है तुम्हारी आँख़ों में
और रोक ली जाती है
पलकें झपकाकर
आज बह जाने दो
वह घुटन,
जो घोंटती रही है तुम्हारे शब्दों को
वो कुंठाएँ
जो घाव करती रही हैं तुम्हारे मस्तिष्क में
और वो विडंबनाएँ
जो तुम्हारे हृदय को कचोटती रही हैं
सदा से
और हो सके तो
लिख देना वो प्रेम भी
जिसने तुम्हारी जिजीविषा को थामे रखा है
छाप देना वो निशान,
जो बादलों ने आसमाँ को दिये
बारिश के बाद
और सूर्य व संध्या का आलौकिक आलिंगन
कोरे कागज़ पर ।
