हां मै जानती हूं!
हां मै जानती हूं!
हां मैं जानती हूं,
जानती हूं कि तू तारो के काफ़िले में सजा रहता हैं,
तेरे स्वागत में हमेशा टिमटिमाता गालीचा बिछा रहता हैं,
पर तू नहीं जानता,
नहीं जानता कि जब तू मुंह फेर कालिख की चादर ओढ़ लेता हैं,
टूटा हुआ एक सितारा भी आसमां छोड़ देता हैं...
हां मैं जानती हूं,
जानती हूं कि तेरे आने से सूरज भी ढल जाता हैं,
समुन्दर भी तुझसे मिलने से खुद को रोक नहीं पाता हैं,
पर तू नहीं जानता,
नहीं जानता कि जिस रोज़ तेरी चांदनी इस धरा को नहीं छूती हैं,
सागर की लेहरें भी तेरी विरह में भर आती हैं...
हां मैं जानती हूं,
जानती हूं कि भरे महफ़िल में भी तू खुद को अकेला पाता हैं,
भले ही तेरे इर्द गिर्द तारो का मेला जगमगाता हैं,
पर तू नहीं जानता,
नहीं जानता कि तुझ सा कोई तुझे देख खुद को भूल जाता हैं,
तेरे ही साथ में वह खुद को पूरा पाता हैं...
हां मैं जानती हूं,
जानती हूं कि तू मुझे एक अनजाना सा सुकून देता हैं,
तेरी बदलती खूबसूरती से तू मुझे अपनी ओर खींच लेता हैं,
पर तू नहीं जानता,
नहीं जानता कि तेरे चेहरे के पीछे के राज़ मुझे ज्यादा भाते हैं,
इसीलिए शायद मेरे सारे भेद भी तेरे ही सामने खुल पाते हैं।