हाले ज़िन्दगी भाग - 2
हाले ज़िन्दगी भाग - 2
सब भूल के भी जीवन बिताना पड़ता है,
न चाहते भी लोगो के बीच आना पड़ता है।।
दूसरो को खुश रखने की कशमकश में,
न जाने इस दिल को कितना तड़पना पड़ता है।।
जो रूठ जाते हैं उनको बार-बार मनाना पड़ता है,
खूद हार के भी दूसरो को जीतना पड़ता है।।
यही सच है ज़िंदगी का ये मान जाना पड़ता है,
इस दिल के साथ खेल जाते हैं अनेक।।
बार बार दिल को ये समझाना पड़ता है,
सब भूल के भी जीवन बिताना पड़ता है।।
न चाहते हुए भी मुस्कुराना पड़ता है,
हम खुश हैं बहुत अपनी ज़िन्दगी से।।
हम बहुत खुश हैं अपनी ज़िंदगी से,
ये झूठ भी दुनिया को दिखाना पड़ता है।।
अपने दर्देदिल को सभी से छुपाना पड़ता है,
दिल के अरमानों को दिल में कहीं दबाना पड़ता है।।
दिन हो या रात, रात हो या दिन,
हर पल इस दिल को रुलाना पड़ता है।।
हमभी इस दुनिया केे लोगों जैसे हैं,
यही झूठ ताउम्र फैलाना पड़ता है।।
ये भी ज़िन्दगी का एक कटु सत्य है,
सब भूल के भी जीवन बिताना पड़ता है।।
दिल को बहुत समझाना पड़ता है,
अपनी भावनाओं को मन में दबाना पड़ता है।।
ये मतलब कि दुनिया है, साहब
ये बात भी दिल को समझाना पड़ता है।।
यही एक शिकायत है मुझे जिंदगी से,
क्यूँ हर बार खुद को मिटाना पड़ता है।।
बड़ी मुश्किल से लिखता हूँ इस ज़िन्दगी को,
खूद बार-बार इसे मिटाना पड़ता है।। लेकिन
सब भूल के भी जीवन बिताना पड़ता है,
न चाहते हुए भी मुस्कुराना पड़ता है।।
