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TRA_ veller

Others

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हाले ज़िन्दगी...! भाग - 2

हाले ज़िन्दगी...! भाग - 2

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सब भूल के भी जीवन बिताना पड़ता है,

न चाहते भी लोगो के बीच आना पड़ता है।


दूसरो को खुश रखने की कश्मकस में, 

न जाने इस दिल को कितना तड़पना पड़ता है।


जो रूठ जाते है हमसे बेवजह, 

उन सब को बार-बार मनाना पड़ता है।

          

लेकिन इन सब बातों को

भूल कर जीवन बिताना पड़ता है।


न चाहते हुए भी मुस्कुराना पड़ता है,

हम खुश है ये दुनिया को दिखाना पड़ता है। 


अपने दर्द को बहुत बेदर्दी से छुपाना पड़ता है, 

दिल के अरमानों को दिल में कहीं दबाना पड़ता है।


दिन हो या रात, रात हो या दिन, 

हर पल इस नादान दिल को रुलाना पड़ता है।


लेकिन, अजीब सी बात है इस ज़िन्दगी का

सब भूल के भी जीवन बिताना पड़ता है। 


इस बिखरे दिल को बहुत समझाना पड़ता है, 

हर बार इसे टूटने से बचाना पड़ता है। 


अपनी मन मेंं उठ रही भावनाओं को, 

अपने अंतर्मन में ही दबाना पड़ता है। 


ये मतलब कि दुनिया हैै 

ये बात दिल को समझाना पड़ता हैै। 


जब पड़ जाता हूँ बिल्कुल अकेला, 

रोते हुए खुद को समझाना पड़ता है। 


लेकिन सब भूल के भी जीवन बिताना पड़ता है, 

न चाहते हुए भी मुस्कुराना पड़ता है।


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