हाले ज़िन्दगी..।।
हाले ज़िन्दगी..।।
यह ज़िन्दगी है यारों,
यहां रोज़ लगता एक मेला है।
ढेरो लोग आते हैं,
फिर भी ना जाने क्यूँ यह मन बिल्कुल अकेला है।
फिर भी ना जाने क्यूँ यह मन बिल्कुल अकेला है।।
ज़िन्दगी के इस मेले में लोगों का आना हुआ,
ना जाने कितनों का इस दिल से मिलना मिलाना हुआ।
पर सब ने हमारे दिल केेे साथ की रूसवाई,
बस कुछ थे जिन्होने ज़िन्दगी भर की साथ निभाई।
पर यह बेबाक दिल कुछ समझ नहीं पाता है,
हर रोज़ बिछड़े लोगों के
आने की राह सजाता है।
अब इस नादान को कैसे समझाएं,
कि इस मतलब कि दुनिया में,
यही तो एक अफसाना हुआ।
हर किसी का इस ज़िन्दगी में,
किसी ना किसी मतलब से ही आना हुआ।
किसी ना किसी मतलब से ही आना हुआ।
ना जाने कब इस दुनिया ने,
ये नई रीत अपनाई है।
इस नई रीत ने अपनो में,
ही नफरत की बीज़ लगवाई।
इस नफरत दुनिया में रह गए,
अपने जज्बातों के साथ अकेले।
ना जाने इस मेले में,
और कितनों का आना होगा।
उनमें से कितनों का,
बीच राह पे छोड़ जाना होगा।
ना जाने कौन
इस दिल में बस जाएंगे,
ना जाने कितने सिर्फ मतलब के लिए साथ आएंगे।
