गुलाब
गुलाब
मैं गुलाब,
कांटो में खिल,
निखर गया हूँ मैं,
देने प्रेम बेहिसाब,
कुछ संवर गया हूँ मैं,
न देखना केवल मेरी सुंदरता,
संघर्ष पथ भी जरा देखना,
निखारा जिन कंटको ने मुझे,
जरा उनका भी अवलोकन करना,
फिर न डरना संघर्ष पथ से,
तुम भी जरा संवरना अब,
प्रेम फिर दिल मे सजेगा,
कुछ ऐसे महकना तुम।।