STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

ग्रीष्म ऋतु

ग्रीष्म ऋतु

1 min
154

तपती धूप

जान ले लेगी जैसे

दम निकला।


हाय रे गर्मी

चैन न पल भर

दम घुटता।


ऐसा लगता

आग बरसे जैसे

जला डालेगी।


बर्दाश्त नहीं

इस बार की गर्मी

भारी पड़ेगी।


सहना होगा

हमेशा तो लगता

अबकी बार।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract