ग्रीष्म ऋतु
ग्रीष्म ऋतु
पड़ी हैं सूर्य की किरणें, जलाती जीव का तन हैं
पशु, पक्षी सकल प्राणी, तड़पते तो सभी जन हैं
चली है धूल की आंधी, सभी हैं फूल मुरझाए
नदी, तालाब सूखे हैं, हुई वर्षा अगन की है
छिदीं ओजोन की परतें, निकलती जान है सबकी
दहकता सूर्य का गोला, दिखाता शान है अबकी
तपिश को रोकने की तुम, जरा सोचो अभी बन्दे
शज़र तुम काटना छोड़ो, इन्हीं में जान है रब की