गृहणी
गृहणी
जाने कौन सी मिट्टी की, ये औरत बनी होती है
खुद की जिंदगी खुशी-खुशी, जो दूसरों के नाम लिख देती है
दूसरों की जरूरत का ख्याल, ये खुद से पहले करती है
जाने कौन सी मिट्टी की, यें औरत बनी होती है
घर में सबसे पहले उठकर, सबसे आखिर में सोती है
किसको कब क्या चाहिए, सबकी खबर इन्हें जाने कैसे होती है
दूसरों की तकलीफ का ख्याल, यें खुद से पहले करती है
जाने कौन सी मिट्टी की, यें औरत बनी होती है
इन पर हक खुद का कम, दूसरों का ज्यादा होता है
अच्छा बुरा जो भी हो, हर कोई बेझिझक इनसे कह देता है
छोटी सी तारीफ सुनकर फूले नहीं समाती है,
कोई कितना भी कड़वा बोले, फिर भी गले उसे लगाती है
पता नहीं कैसे सब कुछ, ये कर लेती है
जाने कौन सी मिट्टी की, यें औरत बनी होती है
घर की हर परेशानी से, इनको लड़ना आता है
इनको हर माहौल में, बखूबी डालना आता है
दूसरे की खुशी के लिए, खुद को तक बदल लेती है
जाने कौन सी मिट्टी की, यें औरत बनी होती है
इनका पूरा दिन घर में, दूसरों के काम करते निकल जाता है
फिर भी इनकी जुबान पर, एक तीखा लफ्ज़ न आता है
यें हर किसी के काम को, अपना समझकर करती है
जाने कौन सी मिट्टी की, यें औरत बनी होती है
इतने करने पर भी, "क्या करती हो तुम" यें सुनती है
पर कमाल की बात तो यह है, उसे मुस्कुरा कर अनदेखा भी करती है
कभी-कभी परेशान होकर ,अब ना करूंगी कहती है
पर अगले ही पल फिर, उसी काम में ये लगती है
इनकों किसी से ना कोई शिकवा ना गिला होता है,
बल्कि इनके गुस्से में भी प्यार छुपा होता है
जाने कैसा, इनकी जिंदगी का सिलसिला होता है
इन सबके बदले, बस प्यार की उम्मीद ही ये करती है
जाने कौन सी मिट्टी की, यें औरत बनी होती है...