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Srinidhi Srinivasan

Abstract

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Srinidhi Srinivasan

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गर इश्क को थोड़ी फुर्सत होती

गर इश्क को थोड़ी फुर्सत होती

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गर इश्क को‌ थोड़ी फुर्सत होती,

जिंदगी और भी खूबसूरत होती,‌


दिलों में इतनी नफ़रत ना होती,

हर तरफ बहार ऐ बरकत होती,‌

और खुदा की थोड़ी ज्यादा रहमत होती,

गर इश्क को‌ थोड़ी फुर्सत होती।


दिलों में इतनी फुरकत ना होती,

लोगों में‌ आज भी थोड़ी कुरबत़ होती,

दिल का दिमाग लगा रहता

जो उस‌ पर प्यार की संगत होती,


फासलों की इतनी रंगत ना होती,

जहां है, वही जगह जन्नत होती

गर इश्क को थोड़ी फुर्सत होती 

खालीपन में भी दिल भरा रहता,

कुछ ऐसी हरकत होती,


अगर हर किसी को सवाब की सौगात होती।

सबके मन में एकता की अजमत होती,

कुछ ऐसी बेमिसाल कहानी बनती‌,

जिसमें कोई गफलत ना होती,‌


हर तरफ अपनेपन की बरसात होती,

दिल में इतनी कड़वाहट ना होती, 

गर इश्क को थोड़ी फुर्सत होती

गर इश्क को थोड़ी फुर्सत होती।


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