गलवान के बलवान
गलवान के बलवान
सिंधु घाटी सभ्यता की भव्यता भूला जग,
जब जागा गौरव गलवान का!
विस्मित विश्व ने देखा शौर्य और साहस,
भारत मां के बांके बलवान का।।
शत्रु सबल था, छली परम प्रबल,
गणना में था हमसे बीस!
पड़ा पाला पराक्रमी रणधीरों से जब,
हुआ नतमस्तक, झुकाया शीष।।
निज उत्पादों सम रिपु सिद्ध हुआ,
दर्प भरा पर बल से हीन!
भारतीय सैन्यकर्मियों की देख वीरता,
हतप्रभ हो गया, चकित 'नीच' चीन।।
रही शांति की संस्कृति हमारी, नहीं,
थोपा हमने कभी किसी पर युद्ध।
पर आन पड़ी विपदा न पीछे हटे, डटे!
किया पृथ्वी को असुरी शक्तियों से शुद्ध।।
है साक्षी सकल संसार यह न हमने,
कभी किसी पर प्रथम प्रहार किया,
पर मनुज-परित्राण हेतु बन अवतारी,
हर युग में दनुज-संहार किया।।
शत्रु सियार सा शातिर था पर,
हम भी थे फुर्तीले चीते से,
अरि-दल को ही हमने माप दिया,
उसके ही गले के फीते से।।
हम बैठे सहमति की आस लिए वह,
कपट की कर रहा था तैयारी,
लेकिन चीनी-दांव पड़ गया उलटा,
टूटा दंभ पड़ा दंड भुगतना भारी।।
क्या पता इतनी संकरी सोच तुम्हारी,
सोते में छल कर जाओगे।
पर गिद्ध-दृष्टि रख कर भी जीत के लिए,
कहां से पौरुष-पराक्रम पाओगे?
हम सत्य, अहिंसा और धर्म के रक्षक,
ज्ञान देकर, जगत को जीना सिखाया है,
पर मातृभूमि भारत की खातिर छप्पन इंच का,
सीना ठोककर दिखलाया है।।
हमने बुद्ध-संदेश शांति और सौहार्द देकर,
धर्म-विस्तार का जयघोष किया।
कुटिल-कोरोनादायी तुमने हड़प नीति अपनाई,
मानव-मूल्यों के हनन का दोष लिया।।
पर ध्यान रहे! यह वसुधा वीरों की,
जहां बसते बलिदानी सैन्य-शेर।
राष्ट्र के सरहदों की सुरक्षा खातिर,
प्राणोत्सर्ग को आतुर, करने शत्रु को ढेर।।
है नमन मेरा उन रणधीरों को जो,
राष्ट्र-रक्षा में हुए शहीद।
आज प्रण लेते हैं हम-सब,
बुझेगा न आपके हौसले का दीप।।
मैं अकिंचन और क्या दे सकता,
स्वीकार करो हृदय-भावांजलि।
तुम प्रेरणा-शशि बन चमको नभ में,
समर्पित तुम्हें मेरी श्रद्धांजलि।।