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Santosh Kumar Sahu

Abstract

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Santosh Kumar Sahu

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गलती

गलती

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जानबूझकर न सही 

कभी-कभी अनजाने से

हो जाता है।

भी-कभी दूसरे की

मुस्कुराहट छीनता है तो 

कभी-कभी खुद का 

दिल दुःखता है।

 

गलती 

ठीक न हो सही 

कभी-कभी

बहुत कुछ सीखता है।

 

गलती करने पर ही

इंसान सच्चाई को जानता है 

खुद को पहचानता है।


क्या गलत क्या सही 

नियम की एक

लम्बी लकीर है 

कभी-कभी गलत भी

ठीक लगता है तो

कभी-कभी ठीक भी गलत।

 

इस गलती को समझना

मुश्किल हो जाता है।

गलती कभी-कभी

माफी के काबिल 

कभी-कभी दण्ड के

हकदार होता है।

 

जो यह सुधार सके

वो महानता का दावेदार बनता है।


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