ग़ज़ल - ए - इश्क़
ग़ज़ल - ए - इश्क़
इश्क़ तो सिर्फ बहाना था
हमें तो दिल तुड़वाना था ।।
परवाना तो बस नाम था
हमें तो चिराग़ बुझाना था ।।
इश्क़ था पर हुआ नहीं
शायद मैं दीवाना ना था ।।
न होगा जहां में तुम जैसा
ये गुरूर मुझे तोड़ना था ।।
हमारा कोई ठिकाना न था
हमें भी कभी घर बनाना था ।।