गीत:- प्रेम ईशा
गीत:- प्रेम ईशा
तेरी नाजुक कलाई कुछ कैहती थी हमसे
बेरी बनकर घटाओँ में मिलती थी सबसे
चालों की चलन में घटती बिजिलियाँ
गिर गिट की तरह रंग बदलती घड़ियाँ
फेर बदलाव कुछ कर न जाना तुम
इससे पहले क्यों छिड़ती थीं गोलियाँ
पहले तो फूलों की तरह खिलती थी रबसे
बेरी बनकर घटाओँ में मिलती थी सबसे
अन्जानी महफ़िलों में कैसे रहती होगी
याद फिरसे उसे अपनो की आती होगी
अपनी नजरों से कैसे नजरें मिलायेगी
पीड़ा उसके दिल कोभी भारी होती होगी
कभी घूंघट ऑड़ लेकर छिपती थी मुझसे
बेरी बनकर घटाओँ में मिलती थी सबसे
पतझड़ सा झाड़ता हुआ मेरा जीवन
तेरे वियोग में आसान नहीं रहा यौवन
तपता रहा है इधर कोई तुम्हारी याद में
बिन उकसाए क्यूँ नहीं ये आता सावन
रंजीत प्रेम ईसा क्यूँ वो रखती थी तुमसे
बेरी बनकर घटाओँ में मिलती थी सबसे
बेरी बनकर घटाओँ में मिलती थी सबसे
तेरी नाजुक कलाई कुछ कहती थी हमसे
बेरी बनकर घटाओँ में मिलती थी सबसे।