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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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घर परिवार समाज

घर परिवार समाज

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संसार की परिकल्पना को

ईश्वर ने बड़ी खूबसूरती सजाया

क्या गज़ब संदेश इसमें छिपाया

घर परिवार समाज का अद्भुत सामंजस्य बिठाया।

घर के बिना परिवार अधूरा

परिवार बिना घर लगे बेचारा

घर परिवार से जोड़ दिया समाज को

समाज के बिना परिवार का सूना जग सारा।

नीरस हो जायेगा हमारा जीवन

परिवार में ही कब तक उलझा रहे ये मन

अलग अलग घर परिवारों की

अलग अलग किस्से कहानियां हैं

समाज के ही तो हम आप सभी हिस्से हैं,

यही तो जीवन की कहानी है

बिना घर, परिवार या समाज को

न कोई जिंदगानी है,

कुदरत ने ऐसा ताना बाना बुना है

घर, परिवार की इकाई को जोड़

समाज का रुप दिया है,

जीवन की आवश्यकताओं में

समाज का भी एक सूत्र पकड़ा दिया है।

एक भी सूत्र छूटा या टूटा

तो जीवन नीरस हो जायेगा,

इंसान जितेगा भला कैसे

जीते जी मुर्दा सरीखा हो जायेगा।

ईश्वर की इस व्यवस्था को खंडित न कीजिए

जीवन की इस व्यवस्था में

अवरोध न पैदा कीजिए।

घर परिवार समाज के सूत्र को पिरोते रहिए

जीने के लिए ईश्वरीय अवधारणा को संजोते रहिए। 



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