ग़ज़ल
ग़ज़ल
जो नहीं है उसे सजायें क्यों
हम वहम की कबा बनायें क्यों
वस्ल फिर वस्ल है सो ग़ुल-गश्ता
फूल से तितलियाँ उड़ायें क्यों !
हर अदालत यहाँ फ़रेबी है
शक्ल को आइना दिखाये क्यों
बार इक उम्र से हैं हम खुद पर
गैर जां को बदन में लायें क्यों !
तेरी ही आरज़ू में क्यों जीयें
तुझको ही ज़िन्दगी बनाये क्यों
रंगे - दुनिया है वक़्त पे मौक़ूफ़
ग़मे - दौरां से दिल लगायें क्यों !
बात सुन - सुन के तेरी नासेहा
मुश्किलें हिज्र की बढ़ाये क्यों
वक़्त के साथ चलना है तो फिर
मसला क़ब्ल का उठायें क्यों !
लौट आना है जब हमें तन्हा
फिर निकल के अदम से जायें क्यों !
