गांव की माटी
गांव की माटी
गुनगुनी धूप पर
हरी घास का बिछौना
बेफिक्री के आलम में
खुले आसमां तले सोना
दिल से हँसना
दिल से ही रोना
क्षणिक नाराजगी
अटूट बंधन का होना
कंटीले पथ पर चलना
गिली मिट्टी का खिलौना
कंदमूल बड़े चाव से खाना
गुफाओं को घर बनाना
कपड़े की गेंद बनाकर
खेल की दुनिया में खो जाना
कागज़ी कश्ती और फूल बनाकर
आसमां में अपने जहाज़ उड़ाना
गिल्ली डंडा, लंगड़ी, खो-खो
कबड्डी, कुश्ती में दांव लगाना
तंदुरुस्ती गांव, गली-मोहल्ले
कंचे, गुट्टे, पोशम्पा खेलते जाना
मिट्टी की सुंदर लिपाई
रंगोली से आंगन सजाना
ढेर सारे चित्रों की नकल उतारना
दीपमाला से हर त्योहार मनाना
तख्ती सुखाना, लेप लगाना
स्लेट-पेंसिल से हुनर दिखाना
नीली-काली स्याही की पुड़िया
दवात भरना और कलम बनाना
कविता सुनाना, पहाड़े गुनगुनाना
पढ़ना-लिखना, कंठस्थ कर जाना
हर पल मुस्कान चेहरे पर रखना
पगडंडियों में गिरते फिसलते चलते जाना
दूध, दही, लस्सी, घी, मक्खन
गौमाता के संग चरागाह जाना
सब्जी, फल चहुँ ओर हरियाली
बांसुरी की मधुर ध्वनि में झूम जाना
माँ और मिट्टी सबसे न्यारी
जीवन का इनसे बंध जाना
चारों तरफ़ स्नेहिल मौसम
गुरूजनों का सानिध्य पाना
पिता के साये में जीना
ममता के आंचल में सोना
गांव की माटी से जुड़कर
मेरा दिल चाहे फिर बच्चा होना।
