STORYMIRROR

गागर का सपना

गागर का सपना

2 mins
464


दुकान में बने कुम्हार के,

बर्तन थे, विविध प्रकार के।

रखी एक जगह पर थी,

एक साथ गागरें चार...

आपस में बतला रहीं थी,

कर रही थी प्रकट विचार।


पहली बोली ओ सखियों!

ये जीना भी कोई जीना है...

हम में तो लोगों ने बस,

पानी भर-भरकर पीना है।


दूसरी बोली, तू तो बस

एक बात यही दोहराती है...

हम तीनों की तरह क्या कोई,

सपना नहीं सजाती है..?

हम तीनों तो यह चाहती हैं

हमको ले जाए धनवान,

धन-धान्य से भरेगा हमको

बतलाएगा अपनी जान।


पहली बोली तुमने अपना

सपना तो बतलाया है,

पर सखियों तुमको संकट का

ध्यान कहाँ पर आया है..?

सच कहती हूँ, तुम्हें लूटने

चोर एक दिन आएगा...

तुम्हें फोड़कर, धन समेटकर

भाग वहाँ से जाएगा।


तीसरी बोली, कह देती हूँ,

हमको नहीं डराया कर...

सपना तो तू भी बुनती है

अपना भी बतलाया कर।


पहली बोली, बात है यह तो

मेरा सपना भी सुन ले

मैं तो यह चाहती हूँ कि...

भक्त कोई मुझको चुन ले।

पूजा-अर्चना होगी,

प्रभु चरणों में रखी जाऊँगी

मंगल-कलश कहलाऊँगी

जीते जी मुक्ति पाऊँगी।

यह कहते हुए आँखें भर आई,

बस इतना सा सपना है...

वर्ना हमने माटी होकर,

फिर माटी में खपना है।


सपना सुन सब सखियाँ हर्षी

चौथी ने फरमाया है...

कितनी सुखद कल्पना तेरी

सद्मार्ग दिखलाया है,

कितनी सुखद कल्पना तेरी

सद्मार्ग दिखलाया है...।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Sandeep Singhal

Similar hindi poem from Inspirational