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Pushkar Barnwal

Abstract

2.5  

Pushkar Barnwal

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एक फौजी का आखिरी खत

एक फौजी का आखिरी खत

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मस्त मगन मतवालो का,भारत माँ के रखवालो का

आखिरी खत सुनाता हूँ, उनका एहसास बताता हूँ !


आज तेरा बेटा माँ देख अमर हो गया है  

सारे दुःख दर्द से आज बेखबर हो गया है।

सोचता हूँ सारी बात आज बयां करू, हर बात जो दिल में है

सीन ताने चल रहा क्योंकि भारत माँ आज मुश्किल में है।


माँ तू भी घर पर आस लगाए बैठी होगी 

इस बार भी घर ना आया ये सोच कर ऐंठी होगी

इस बार तिरंगे में लिपटा आऊंगा 

तू माने ना माने तेरी आँखे भी नाम कर जाऊँगा


कुछ उदास बैठे होंगे कही तोपो की सलामी 

माँ देख तेरे बेटे की भी कहानी होगी  

बाबूजी अंदर से टूटे होंगे पर मुँह से कुछ ना बोलेंगे

घर के उस अंधियारे कमरे में छुपकर धीरे से रो लेंगे   

 छाती उनकी भी चौड़ी होगी पर अंदर दर्द समाये है 

गलियो में सीन ताने चलते वो जाने कितना गम छुपाये है

 

बहना को कहना माँ इस बार नही तो अगली बार 

राखी का हर वचन निभाऊँगा

हुआ अगर अलग जन्म तो तेरा भाई बनकर आऊंगा

तेरी कान खीचूंगा फिर उस आँगन में दौडाऊंगा

स्नेह करूँगा जीवन भर जितना चाहे सताऊंगा ॥

 

माँ एक पहलु जीवन का तुमसे थोड़ा छुपा है

बैठी होगी बगिया में मन उसका भी रूठा है  

तुम उसे ये बता देना मेरा हर कसम पक्का था 

दुनिया से छुपा रहा पर पर प्यार मेरा सच्चा था ॥ 

 वो बेचारी अब गम भी किसी से बता ना पायेगी  

दर्द उसके दिल का किसी को ना जता पाएंगे 


तुम उसके सारे गम को बाँट लेना 

बेटा समझ कर उसको भी जितना चाहे डाँट लेना

हुआ अगर अगला जन्म तो मेरा बेटा बनकर आऊंगा  

माँ बाबा मैं आपके सपने उन जन्म पुरे कर जाऊंगा


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