एहसास की अभिलाषा एक देश प्रेम
एहसास की अभिलाषा एक देश प्रेम
तुम पुष्प से सुकुमार हो, तलवार की भी धार हो
तुम ही भविष्य हो देश का, मझधार में पतवार हो।
माँ भारती को मान दो, और बड़ों को सम्मान दो
जो दुष्टता करते यहाँ, उन दुष्टों को अपमान दो।
कर्तव्य पथ पर बढ़ चलो, और जीत सिर पर मढ़ चलो
जो सज्जनों को सताता हो, दुष्टों से जंग भी लड़ चलो।
अपनी कहो सबकी सुनो, जो ठीक हो तुम वो चुनो
ब्रह्मांड में बस प्रेम हो, तुम तार कुछ ऐसे बुनो।
तुम हो भविष्य देश के, उस ईश रूपी वेश के
ममता दया करुणा यहाँ, निर्माण हो परिवेश के।
जिस तरफ हो तेरी नजर, दुनिया चले बस उस डगर
तू दाँत गिनता सिंह के, क्या करेगा तेरा मगर !
तेरे आगे सारा जग झुके, तू चाहे तो दुनिया रुके
वो वीर भी धरती गिरे, तू मार दे जिसको मुक्के।
तू वीर बन बलवान बन, तू भारत माँ की शान बन
तू शिक्षा दीक्षा दे जहाँ को, तू ज्ञान-गुण की खान बन।
तज स्वार्थ तू बन स्वाभिमानी, परमार्थ कर बन आत्मज्ञानी
जो भी लिखे इतिहास को, वो गाये तेरी ही कहानी।
तू लड़ जा अत्याचार से और रिश्तों के व्यापार से
यदि बात न बने बात से, समझा उन्हें तलवार से।
शेखर-सुभाष-अशफाक बन, तू वतन खातिर खाक बन
गीता-कुरान-गुरु ग्रन्थ साहिब, इन सभी जैसा पाक बन।
तू विवेकानन्द, तू बुद्ध बन और अधर्म के तू विरुद्ध तन
गंगा के निर्मल धार-सा, तू मन से अपने शुद्ध बन।
तू गगन तू उपवन सुमन, तू भोर की पहली किरण
एहसास की अभिलाष ये, तू कर अमन अपने वतन।।