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ए ज़िन्दगी

ए ज़िन्दगी

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कुछ तो ख्याल कर ए ज़िन्दगी
अब रहा भी नहीं जाता,

बेहिसाब दर्द दिए है तूने,
अब सहा भी नहीं जाता,

सिकुड़-सा गया हूँ तेरी सिलवटो में ए ज़िन्दगी,
मायूस होकर खुद ही यहाँ,
सबको हँसाया भी नहीं जाता,

खामोश हो कर सहम-सा गया हूँ मैं
दास्ताँ-ए-दर्द अब किसी से कहा भी नहीं जाता,

उजड़ भी रही है बस्तीयाँ टूटे सपनों की,
आशियाँ अब दिलो का बसाया भी नहीं जाता,


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