दूर दूर तक बिखरा आसमां
दूर दूर तक बिखरा आसमां
दूर दूर तक बिखरा आसमां कौन सा तारा देखूं मैं,
ये कितनी गहरी है निशा, तुम्हें कैसे पहचानूं मैं।
ना जाने कहां ,दूर है साहिल, तुम्हें कैसे ढूँढू मैं,
बुझी है निगाहें,खामोश है जुबां,कहां देखूं, किससे पूछूं तुम्हें मैं।
दूर दूर तक बिखरा आसमां,कौनसा तारा देखूं मैं..............
ना है कोई रास्ता,ना है कोई मंज़िल,किस तरफ चलूं मैं,
ना है कोई बताने वाला,ना कोई समझाने वाला,किस तरफ बढ़ूं मैं।
हर पथ की है दो मंज़िल,किस तरफ कदम रखूं मैं,
पर जीवन तो है एक,किस राह को चुनूं मैं।
दूर दूर तक बिखरा आसमां,कौनसा तारा देखूं मैं...........
जीवन का हर पल है एक चुनौती,इसे कैसे समझाऊं मैं
दर्द में टूटते हुए इस हृदय को कैसे अल्प हर्षित करूँ मैं।
विषाद तो है इसकी एक व्यथा, इसे कैसे अंतर्मन पर लाऊँ मैं,
दूर दूर तक बिखरा आसमां,कौनसा तारा देखूं मैं।

