दुनिया के उस छोर तक
दुनिया के उस छोर तक
सर झुकाना जिनकी आदत नहीं है
वो सर कटवाने से नही डरते,
जो मरते दम तक
सिर्फ कयामत से टकराना जानते हैं
वो चलते होंगे वही राह
जो तुमने और हमने
रोज कई बार चली होगी,
पर उनकी एक ही चाल काफी होती है
उनके आसमां को बुलंद करने के लिए
एक और सिलसिला उनका
ऐसा भी सुनने में आता है
जो तुम मानो या ना मानो,
पर उनके आने की खबर
बड़ी आसानी से पहुँच ही जाती है
दुनिया के उस छोर तक
अब यहाँ के हवाओं के रुख को भी
बदलना पड़ता है अपना रास्ता
जब इन सिमटी हुई गलियों से
उनके आने की आहट से
डरकर भागता है अँधेरा
और तूफान भी दबे पांवो से गुज़र जाता है...