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Shabnam Bhartia

Inspirational

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Shabnam Bhartia

Inspirational

दोहरी मानसिकता

दोहरी मानसिकता

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क्या कहा ? घूमने जा रहा है ! अच्छा, अच्छा, जाओ । और देखो , रुपये पैसों की चिंता मत करना । मैं अभी तुम्हारे अकाउंट में फंड ट्रांसफर कर देता हूं। लक्ष्मी चंद्र ने फोन पर अपने बेटे से कहा। 

तभी उदास और दुखी सा नोकर ऑफिस में हड़बड़ाते हुआ आकर बोलता है - " मालिक हमें भी तनख्वाह दे दीजिए । दो तीन महीने से घर पर पैसा नहीं भेजा, मां भी बीमार है, अभी फोन आया था। "

लक्ष्मी चंद्र ने उसकी बात पर जरा भी ध्यान न देते हुए कहा -" नहीं , अभी कोई तनख्वाह नहीं । मालूम है 

लॉक डाउन के बाद अभी काम चालू हुआ है । "

नोकर- "मालिक ! दो नहीं तो एक महीने की ही दे दीजिए । सख्त जरूरत है , गांव में सब परेशान हैं ।"

लक्ष्मी चन्द्र ने झल्लाते हुए कहा -" अरे ! तुझे समझ नहीं आता क्या ? अभी पैसा नहीं है !! कोरोना ने वैसे ही हालत खराब कर रखी है और तुम हो कि तनख्वाह तनख्वाह की रट लगाए हो ।" 

नोकर -" मालिक पापी पेट के लिए यहां पड़े हैं , घर में खाने को भी नहीं है। दे , दो ! आपकी मेहरबानी होगी।लक्ष्मी चंद्र ने गुस्से से कहा -" अबे साले !! लगता है तेरे इतनी आसानी से समझ आने वाली नही है। चल निकल यहां से । कोई तनख्वाह नहीं । वापस मत आना आज के बाद । निकल , निकल!!!

 और खड़े होकर नोकर को धक्के मारकर ऑफिस से निकाल देता है।तभी फोन की घंटी बजती है लक्ष्मी चंद्र फोन उठाकर-

 "हां बेटा ! बोल । क्या ?? बीस हजार !! हां, हां मिल जाएंगे । जा एन्जॉय कर !


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