बेटी की कलम से
बेटी की कलम से
सृष्टि मूल का बीज हूं मैं,
जीवन का मीठा संगीत हूँ मैं,
सूर्य सा प्रखर तेज हूँ रखती,
हां, चांद सी शीतल भी हूं मैं।
जग-जननी का रूप हूं मैं,
लक्ष्मी सरस्वती दुर्गा हूं मैं,
मकान को घर हूं बनाती,
हां संस्कारों का आधार हूं मैं।
त्रिलोक की रानायी हूं मैं,
खुशियों की शहनाई हूं मैं ,
जग जीवन को प्रेम से भरती,
हां, ममत्व रूप अन्नपूर्णा हूं मैं।
परिवार की आन बान हूं मैं,
परम परमेश्वर का वरदान हूं मैं,
घर को इंद्रधनुषी रंगों से सजाती
हां, पितृ गौरव आत्मबल हूं मैं।
नदियों सी पावनता मुझमे
मेरु सी दृढ़ता भी मुझ में,
वसुंधरा सा धैर्य हूँ रखती,
हां, एक शक्तिपुंज हूं मैं।
कोमल नही सशक्त हूँ मैं,
वक्त पड़े काली खप्परवाली हूं मैं,
अर्धांगनी बन नर जीवन संवारती,
हां, मगर पापियों का काल हूं मैं।