दिवाली
दिवाली
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बुझी बुझी सी थी एक दिवाली ताश की कुछ बाज़ियां गवा कर,
मिटटी के खिलौने बेच कर इस बार किसी का आँगन जल उठा !
मिठाई और मेहमान के इंतज़ार में इधर उधर घुमते मेज़बान,
कहीं एक दिए की रौशनी में गुड़ खाकर,
एक परिवार ने दिवाली मनाई….
वो जो रहते हैं हर पल उजालों में, चका चौंध में,
अँधेरे का एक कोना भी नहीं सेह पाते!!
जिनकी ज़िन्दगी अंधेरों में हो गुजारी, उनसे पूछिए जनाब,
एक छोटा सा दीया कितनी रौशनी कर देता है !