कल ही की तो बात है
कल ही की तो बात है
कल ही कि तो बात है जब नन्हें नन्हें कदमों से हमने चलना सीखा था।
पापा की छोटी उंगली पकड़ के उछलना टहलना सीखा था।
कल ही तो मुँह से उंगली निकालके हाथ में पेंसिल पकड़ना सीखा था
उँगलियों के बीच एक टूटा क्रेयॉन लेकर दीवारों पर लकीरें रगड़ना सीखा था।
कल परसों ही पापा ने मेरा पहला स्कूल यूनिफार्म खरीदा था,
और मम्मी ने लंच बॉक्स में आलू पराठा भेजा था।
कल ही कि तो बात है जब पापा ने मेरा हाथ टीचर को दिया था,
और कहा था शाम को आऊंगा, पक्का लोलीपोप लाऊंगा।
कल ही कि तो बात है, कल ही तो रो रो कर शाम का इंतज़ार किया था।
कल ही तो मैंने अपना पहला दोस्त बनाया था,
कल ही तो उसने मेरी चोटियों को साइकिल के हैंडल सा घुमाया था।
कल ही तो मैंने अपना बर्थडे मनाया था,
मम्मी , पापा और सभी ने मेरे लिए कुछ ना कुछ लाया था।
कल ही तो पहला एग्जाम दिया था, उसमें भी लिखावट पे मार्क गवाया था,
कल ही तो मॉनिटर बनके टीचरr से उस लड़के को पनिश करवाया था।
कल ही तो दिन में होम्वोर्क पे पापा का साइन फेक कर टीचर को दिखाया था,
कल ही तो रात को दाएं हाथ की मुठी या शायद गाल पे थप्पड़ खाया था।
कल ही कि तो बात है, जब स्कूल की गलियों में पकड़म पकड़ाई खेली थी,
मज़े किये थे, शोर मचाया और टीचर की डांट झेली थी।
कल तक ही तो चोकलेट और केक सबसे अच्छे लगते थे,
डब्बे जैसी टी वी में कार्टून देख देख के हंसते थे।
कल ही कि तो बात है जब पापा ने कंधों पर बैठा कर पूरा मेला घुमाया था,
कुछ जल्दी ही बीत चला वो वक्त ,
बस कल ही तो बचपन आया था।